करवा चौथ की पूजा सामग्री (कलश, दिया, और करवा माता की तस्वीर) के साथ सुहागिन महिला बैठी है, जो करवा चौथ व्रत कथा के महत्व को दर्शाती है।

करवा चौथ व्रत कथा: पूर्ण पौराणिक कहानी और महत्व

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करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) हिंदू संस्कृति में पति की लंबी आयु और दांपत्य सुख के लिए किया जाने वाला सबसे पवित्र व्रत माना जाता है। यह व्रत कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं।

 व्रत का महत्व (Importance of the Fast)

कहते हैं कि करवा चौथ व्रत कथा सुनने और पालन करने से वैवाहिक जीवन में स्थिरता आती है। यह दिन न केवल प्रेम और निष्ठा का प्रतीक है (in addition — इसके अलावा), बल्कि स्त्रियों की शक्ति और त्याग की मिसाल भी है। पति के मंगल जीवन के लिए रखा गया यह व्रत स्त्रियों के आस्था का प्रमाण है।

पारंपरिक कपड़े पहने एक विवाहित महिला (सुहागिन) करवा चौथ व्रत कथा की पुस्तक पढ़ते हुए, हाथ में पूजा की थाली और करवा लिए हुए है।
अखंड सौभाग्य के लिए करवा चौथ व्रत कथा का पाठ है ज़रूरी। जानें साहूकार की बेटी वीरावती की पूरी कहानी।

करवा चौथ की कथा (The Story of Karwa Chauth)

पुराणों के अनुसार, एक रानी “वीरावती” ने पहली बार व्रत कथा का पालन किया था। उन्होंने दिनभर निर्जल रहकर व्रत किया, however (हालांकि) रात में भाइयों के छल से उन्होंने चंद्रमा को झूठा देख लिया, जिससे उनके पति की मृत्यु हो गई। बाद में देवी पार्वती की कृपा से उनका पति पुनर्जीवित हुआ। Therefore (इसलिए) माना जाता है कि सच्चे मन से किया गया यह व्रत पति की रक्षा करता है।

V पूजा विधि (Puja Vidhi)

सुबह स्नान के बाद महिलाएं सरगी ग्रहण करती हैं। पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करतीं और शाम को करवा, दीपक और छलनी से चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। Moreover (साथ ही) कथा सुनने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है।

 निष्कर्ष (Conclusion)

करवा चौथ व्रत कथा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और समर्पण का उत्सव है। यह हर वर्ष यह याद दिलाता है कि सच्चा प्यार व्रत, त्याग और आस्था से भी अधिक गहरा होता है।

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