पटना: बिहार की धरती पर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है। पटना के सदाकत आश्रम में हो रही कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक पर न सिर्फ कांग्रेस बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। आज़ादी के बाद पहली बार बिहार में आयोजित इस बैठक को राहुल गांधी की छवि निर्माण की सबसे बड़ी रणनीति माना जा रहा है। CWC की बैठक शुरू हो चुकी है। कांग्रेस अध्यक्ष ने सदाकत आश्रम में झंडा फहराकर, कांग्रेस वर्किंग कमेटी की विस्तारित बैठक का शुभारंभ किया।बैठक में कांग्रेसके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, सचिन पायलट, रमन सिंह, जयराम रमेश, भक्त चरण दास, समेत कांग्रेस के कई दिग्गज नेता शामिल हैं।
लोकतंत्र बचाने की जंग या राजनीतिक पुनर्जीवन?
कांग्रेस इस बैठक को लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बता रही है। लेकिन असल में इसे पार्टी के संगठनात्मक पुनर्जीवन की कोशिश भी माना जा रहा है।
बैठक के एजेंडे में शामिल हैं:
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वोट चोरी और चुनावी पारदर्शिता
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लोकतंत्र पर मंडराते ख़तरे
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संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर हमले
कांग्रेस का कहना है कि यह सिर्फ राजनीतिक बैठक नहीं, बल्कि लोकतंत्र को बचाने का संकल्प है।
राहुल गांधी की यात्रा और छवि निर्माण
पार्टी का दावा है कि राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने युवाओं को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। इससे लोगों में भरोसा जगा और एक नई राजनीतिक चेतना की नींव रखी गई। कांग्रेस मानती है कि यही यात्रा राहुल गांधी को एक जननायक के रूप में स्थापित करने का आधार बनेगी।
लेकिन सवाल यह है —
क्या सिर्फ पदयात्राओं और नारेबाज़ी से जनता का दिल जीता जा सकता है?
क्या राहुल गांधी को जननायक बनाने के लिए जमीनी सियासत और मजबूत संगठनात्मक पकड़ की भी ज़रूरत नहीं है?
बीजेपी का पलटवार
उधर, बीजेपी इस बैठक को महज़ राजनीतिक नौटंकी करार दे रही है। उसका कहना है कि कांग्रेस अब बीते ज़माने की पार्टी बन चुकी है, जो मुद्दों पर नहीं बल्कि भावनाओं पर राजनीति करना चाहती है। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस की रणनीति जनाधार बनाने से ज़्यादा भ्रम फैलाने की है।
बिहार से क्रांति की उम्मीद
कांग्रेस को भरोसा है कि बिहार, जिसने महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण जैसी क्रांतियाँ देखी हैं, अब एक नई क्रांति का गवाह बनेगा। पटना से उठी यह आवाज़ कितनी दूर तक जाएगी, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगा, लेकिन कांग्रेस का मानना है कि यह शुरुआत जनआंदोलन का बीज बनेगी।
आख़िरी फैसला मतदाता के हाथ
राहुल गांधी को जननायक बनाने की कांग्रेस की यह कोशिश कितनी सफल होगी, इसका जवाब न सोशल मीडिया देगा और न ही सिर्फ नारे।
आख़िरी फैसला तो वही करेगा जो सबसे ज़्यादा ख़ामोश है — मतदाता।
क्योंकि भारतीय राजनीति में चेहरे नहीं, बल्कि विश्वसनीयता और जनसमर्थन ही तय करते हैं कि कौन नेता जनता के दिलों में जगह बनाएगा।
पटना से उठी यह सियासी गूंज कितनी दूर तक जाएगी, यह वक्त बताएगा, लेकिन इतना तय है कि अब राजनीति सिर्फ मंचों से नहीं, बल्कि ज़मीन की हकीकत से तय होगी।