दीवाली से पहले बंगाल में सनसनी: बोलपुर के पास मिला द्वितीय विश्व युद्ध का बम
दीवाली से ठीक पहले पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के बोलपुर इलाके में एक सनसनीखेज़ घटना सामने आई, जब स्थानीय लोगों को अजय नदी के किनारे मिट्टी में दबा एक बड़ा धातु सिलिंडरनुमा वस्तु दिखाई दी। प्रारंभिक जांच में यह वस्तु द्वितीय विश्व युद्ध के समय का बम निकला, जिसे बाद में सेना की बम निष्क्रियकरण टीम ने सुरक्षित रूप से डिफ्यूज किया। इस घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि सुरक्षा एजेंसियों को भी सतर्क कर दिया है। त्योहारों के मौसम में बढ़ती भीड़ और आतिशबाज़ी के कारण प्रशासन ने विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं।
कैसे मिला यह बम
घटना रविवार दोपहर की है, जब बोलपुर से कुछ किलोमीटर दूर लाउदाहा (Laudaha) गांव के कुछ मछुआरे अजय नदी के किनारे मछली पकड़ने गए थे। उन्हें मिट्टी में आधा दबा हुआ एक जंग लगा लोहे का सिलिंडर दिखाई दिया। पहले तो उन्होंने इसे कोई पुराना पाइप समझा, लेकिन जब उसमें से अजीब गंध आने लगी और ऊपर कुछ निशान दिखाई दिए, तो उन्होंने तुरंत इसकी सूचना स्थानीय पुलिस थाने को दी।
बोलपुर थाने की पुलिस टीम मौके पर पहुंची और इलाके को घेराबंदी कर लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी। प्रारंभिक जांच के बाद पुलिस ने सेना को सूचना दी। आसनसोल आर्मी कैंप से बम निष्क्रियकरण (Bomb Disposal Squad) की टीम कुछ ही घंटों में घटनास्थल पर पहुंच गई।
सेना ने कैसे किया बम को निष्क्रिय
सेना के बम निरोधक दस्ते ने पहले इलाके को खाली कराया और आसपास के 500 मीटर क्षेत्र में किसी को भी जाने की अनुमति नहीं दी। टीम ने विशेष डिटेक्शन उपकरणों की मदद से बम की संरचना और सामग्री का परीक्षण किया। रिपोर्ट में यह सामने आया कि यह बम द्वितीय विश्व युद्ध (1939–1945) के समय का है, संभवतः किसी ब्रिटिश सैन्य आपूर्ति या हवाई अभ्यास के दौरान गिरा था और मिट्टी में दब गया था।
बम को निष्क्रिय करने के लिए सेना ने नियंत्रित विस्फोट की तकनीक का इस्तेमाल किया। बम को धीरे-धीरे एक गड्ढे में स्थानांतरित किया गया और विशेष विस्फोटक यंत्र की मदद से उसे सुरक्षित रूप से डिफ्यूज किया गया। इस दौरान सुरक्षा कारणों से पूरे क्षेत्र में बिजली आपूर्ति कुछ समय के लिए बंद रखी गई थी। विस्फोट के बाद आसपास के गांवों—पाईकर, मल्लारपुर और सियूरी—में झटके महसूस किए गए, लेकिन किसी तरह की जनहानि नहीं हुई।
प्रशासन और पुलिस की प्रतिक्रिया
घटना के बाद बीरभूम ज़िला प्रशासन ने बोलपुर और आसपास के इलाकों में उच्च सतर्कता घोषित की। पुलिस अधीक्षक (SP) ने कहा कि “यह सौभाग्य की बात है कि बम को समय रहते निष्क्रिय कर दिया गया। यदि यह बम अनजाने में फट जाता तो भारी जनहानि हो सकती थी, खासकर दीवाली के दौरान।”
उन्होंने यह भी बताया कि जांच में यह सामने आया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने बंगाल के कई हिस्सों में अस्थायी एयरस्ट्रिप और हथियार डिपो बनाए थे। इस बम के उसी काल का अवशेष होने की संभावना जताई जा रही है।
इतिहास से जुड़ा संदर्भ
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूर्वी भारत, विशेष रूप से बंगाल, असम और ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में ब्रिटिश सेना ने जापानी आक्रमण से निपटने के लिए सैन्य ठिकाने बनाए थे। 1942 से 1945 के बीच इन क्षेत्रों में कई बार हवाई हमलों और अभ्यासों के दौरान बम गिराए गए थे। युद्ध समाप्त होने के बाद भी कई बम और गोला-बारूद मिट्टी में दबे रह गए, जो आज भी कभी-कभी निर्माण या खुदाई कार्य के दौरान मिलते रहते हैं।
लाउदाहा में मिला यह बम भी संभवतः उसी समय का है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह “250 पाउंड हाई एक्सप्लोसिव बम” जैसा दिखता है, जिसे हवाई हमलों के लिए प्रयोग किया जाता था।
दीवाली से पहले सुरक्षा बढ़ी
दीवाली के नज़दीक होने के कारण यह घटना विशेष रूप से चिंताजनक मानी जा रही है। त्योहार के समय बाजारों और मंदिरों में भीड़ बढ़ती है, और आतिशबाज़ी के कारण विस्फोटक गतिविधियों का स्तर भी अधिक होता है। इसलिए प्रशासन ने तत्काल सुरक्षा निर्देश जारी किए हैं:
- नदी किनारे और आसपास के गांवों में पुलिस गश्त बढ़ाई गई है।
- किसी भी संदिग्ध वस्तु के मिलने पर तुरंत पुलिस को सूचना देने की अपील की गई है।
- त्योहार के दौरान भीड़भाड़ वाले इलाकों में बम निरोधक दस्तों की तैनाती बढ़ाई जा रही है।
- जिला प्रशासन ने अग्निशमन और आपदा प्रबंधन दलों को 24×7 अलर्ट मोड पर रखा है।
बीरभूम के जिलाधिकारी ने कहा, “यह घटना दिखाती है कि पुराने युद्धकालीन अवशेष अब भी हमारे पर्यावरण का हिस्सा हैं। त्योहारों के समय हमें अतिरिक्त सतर्कता रखनी होगी।”
विशेषज्ञों की राय
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह पहला मौका नहीं है जब बंगाल में पुराना बम मिला हो। इससे पहले 2018 में मुर्शिदाबाद और 2022 में जलपाईगुड़ी में भी इसी तरह के बम मिले थे। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन बमों में अब भी शक्तिशाली विस्फोटक होते हैं, जो दशकों बाद भी सक्रिय रह सकते हैं।
सेवानिवृत्त सेना अधिकारी कर्नल (रिटायर्ड) एस. चक्रवर्ती ने कहा, “ये बम उस समय बनाए गए थे जब तकनीक इतनी आधुनिक नहीं थी। इसलिए इनमें रासायनिक स्थायित्व ज्यादा होता है। यदि इन्हें सावधानी से न संभाला जाए तो यह बड़े विस्फोट का कारण बन सकते हैं।”
स्थानीय लोगों में दहशत और राहत
घटना के बाद लाउदाहा गांव और आसपास के इलाकों में कुछ समय तक भय का माहौल रहा। कई परिवारों ने अपने घर खाली कर दिए थे और पास के स्कूलों को भी एक दिन के लिए बंद रखा गया। लेकिन सेना और पुलिस की त्वरित कार्रवाई के बाद जब यह पुष्टि हुई कि बम पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया गया है, तो लोगों ने राहत की सांस ली।
गांव की एक बुजुर्ग महिला शोभा देवी ने कहा, “हमने ऐसा दृश्य केवल फिल्मों में देखा था। जब सेना आई और सब कुछ सील कर दिया, तो लगा कुछ बड़ा होने वाला है। अब सब ठीक है, लेकिन डर अब भी बना हुआ है।”
आगे की कार्रवाई
सेना और पुलिस ने मिलकर इलाके की सघन तलाशी शुरू की है ताकि पता लगाया जा सके कि आसपास और कहीं ऐसे पुराने बम या गोला-बारूद तो नहीं दबे हैं। अजय नदी के किनारे मिट्टी की खुदाई फिलहाल रोक दी गई है।
जिला प्रशासन ने कहा है कि अगर कोई संदिग्ध धातु या वस्तु मिले, तो उसे छेड़े बिना तत्काल स्थानीय थाने या सेना को सूचित करें।
निष्कर्ष
लाउदाहा गांव में मिला यह द्वितीय विश्व युद्ध कालीन बम हमें यह याद दिलाता है कि इतिहास के निशान कभी-कभी हमारे वर्तमान में भी जीवित रहते हैं। दीवाली के पूर्व इस घटना ने सुरक्षा और सतर्कता के महत्व को और अधिक रेखांकित कर दिया है।
सौभाग्य से, सेना की तत्परता और प्रशासनिक सतर्कता से संभावित त्रासदी टल गई। लेकिन यह भी एक सबक है कि ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में लोगों को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि युद्ध के अवशेष अब भी हमारे बीच छिपे हो सकते हैं।
