उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi Katha 2025) हिंदू धर्म में अत्यंत पावन और कल्याणकारी व्रत माना जाता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, बल्कि भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से बचाने का भी वरदान देता है। इसी कारण (Therefore) इसकी पौराणिक कथा सुनना और समझना बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस एकादशी का जन्म स्वयं भगवान विष्णु की दिव्य ऊर्जा से हुआ था, और यही कारण है कि इसका महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
सतयुग में मुर दैत्य का आतंक
सबसे पहले (To begin with) कहानी सतयुग से शुरू होती है। उस समय मुर नाम का एक अत्यंत भयावह और शक्तिशाली दैत्य था। हालांकि (However), उसकी शक्ति केवल बल तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह देवताओं के लिए अभूतपूर्व संकट बन चुका था। मुर ने अपनी ताकत के बल पर इंद्र, वायु, अग्नि, वसु और आदित्य जैसे देवताओं तक को पराजित कर स्वर्ग से निकाल दिया।
इसके बाद (After this) घबराए हुए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी पीड़ा बताई। शिव ने स्पष्ट कहा कि— “तुम्हारी रक्षा अब केवल भगवान विष्णु ही कर सकते हैं।” इसलिए (Therefore) सभी देवता क्षीरसागर की ओर निकल पड़े।
देवताओं की प्रार्थना और भगवान विष्णु का आश्वासन
इसी बीच (Meanwhile) जब देवता क्षीरसागर पहुँचे, तब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे। फिर भी (Yet), देवताओं ने हाथ जोड़कर उनकी स्तुति की और कहा— “हे प्रभु, हम आपकी शरण में आए हैं। दैत्य मुर ने हम सभी को हर दिशा में भटका दिया है, अतः हमारी रक्षा करें।”
इसके तुरंत बाद (Immediately after), भगवान विष्णु ने आंखें खोलीं और पूछा— “यह मुर कौन है? और इतना शक्तिशाली कैसे हो गया?” तब इंद्र ने संपूर्ण कथा सुनाते हुए बताया कि मुर नाड़ीजंघ नामक राक्षस का पुत्र है, और उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। यही दैत्य अब स्वयं सूर्य और मेघ की भूमिका निभाकर देवताओं को चुनौती दे रहा है।
ऐसे में (In such a situation) भगवान विष्णु ने दृढ़तापूर्वक कहा— “हे देवताओं! अब और चिंता मत करो। मैं स्वयं इस दैत्य का वध करूंगा। तुम सभी चंद्रावती चलो।”
दिव्य युद्ध की शुरुआत
इसके बाद (After this) सभी देवता और भगवान विष्णु चंद्रावती नगरी पहुँचे। उसी समय (At the same time) मुर अपनी विशाल सेना के साथ युद्धभूमि में गरज रहा था। उसकी गर्जना सुनकर देवता भयभीत हो गए, लेकिन भगवान विष्णु शांत थे।
फिर (Then) युद्ध आरंभ हुआ। भगवान विष्णु ने अपने तीक्ष्ण बाणों से दानव मुर की सेना का संहार कर दिया। अब अकेला मुर ही बचा था, जो अत्यधिक क्रोधित होकर विष्णु पर टूट पड़ा। हालांकि (However), भगवान के हर हथियार को वह पुष्प की तरह निष्फल कर देता। उसका शरीर बिखरने लगा, परंतु वह रुकने को तैयार नहीं था।
इसी कारण (For this reason) दोनों के बीच घमासान मल्लयुद्ध शुरू हुआ। कहा जाता है कि यह युद्ध पूरे 10,000 वर्षों तक चलता रहा, फिर भी मुर का अंत नहीं हुआ।
भगवान विष्णु का विश्राम और दिव्य देवी का उद्भव
आखिरकार (Eventually) भगवान विष्णु थककर बद्रिकाश्रम पहुँचे और हेमवती नामक 12 योजन लंबी गुफा में विश्राम करने लगे। इसी दौरान (During this time) मुर ने अवसर पाकर उन्हें मारने का प्रयास किया। जैसे ही मुर गुफा में घुसा, भगवान विष्णु के शरीर से एक तेजस्विनी देवी प्रकट हुईं।
इसके बाद (After that) देवी ने मुर को युद्ध के लिए ललकारा। दैत्य चिल्लाता हुआ उन पर टूट पड़ा, लेकिन थोड़ी ही देर में देवी ने उसे परास्त कर दिया और उसका वध कर दिया। इस प्रकार (Thus) दैत्यों का आतंक समाप्त हुआ।
जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागे, तब उन्होंने देवी को सामने देख सारी घटना जान ली और अत्यंत प्रसन्न होकर कहा—
“हे देवी! आपने एकादशी के दिन मेरा कार्य पूरा किया है। अतः आज से आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। जो भी आपकी पूजा करेगा उसे मेरी विशेष कृपा अवश्य प्राप्त होगी।”
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
इसके बाद से (Since then) उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi Katha 2025) व्रत का अत्यंत पावन महत्व माना जाता है। यह केवल मुक्ति देने वाला व्रत नहीं, बल्कि सभी प्रकार के संकटों को दूर करने वाला भी माना जाता है। विशेष रूप से (Especially) जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा से इस व्रत का पालन करता है, उसे मानसिक शांति, आध्यात्मिक बल और भगवान विष्णु की कृपा सहज ही प्राप्त होती है।
साथ ही (Additionally), यह व्रत नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करता है और जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है। यही कारण (That’s why) है कि इस कथा को आज भी बड़े आदर के साथ सुना और सुनाया जाता है।
अंत में (Finally)
उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi Katha 2025 ) हमें सिखाती है कि जब भी जीवन में कोई दैत्य समान कठिनाई या संकट आए, तब भगवान की कृपा और भक्ति से सब कुछ संभव है। जिस तरह देवी ने मुर का विनाश किया, उसी तरह यह व्रत भक्तों के जीवन से सभी नकारात्मकता का अंत कर देता है।




