Lakshmi Ji Ki Katha: बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक बेटी थी जो बचपन से ही ईश्वर-भक्त और सेवा-भाव से पूर्ण थी। वह प्रतिदिन पीपल देवता की पूजा करती थी और नित्य नियम से व्रत रखती थी। एक दिन (One day) उसकी सच्ची श्रद्धा देखकर महालक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं और स्वयं प्रकट होकर बोलीं —
“पुत्री! मैं तुम्हारे भक्ति-भाव से प्रसन्न हूं, क्या तुम मेरी सहेली बनना चाहोगी?”
लड़की ने विनम्रता से उत्तर दिया कि वह पहले अपने माता-पिता से अनुमति लेकर ही निर्णय करेगी। इसके बाद (After that) माता-पिता की सहमति मिलने पर वह महालक्ष्मी जी की सहेली बन गई।
महालक्ष्मी जी का निमंत्रण और चमत्कार
कुछ समय बाद ( After some time) महालक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को अपने घर भोजन के लिए बुलाया। वहां उसने देखा कि सब कुछ सोने-चांदी से सजा हुआ है। भोजन के बाद फिर (Then) लक्ष्मी जी ने कहा — “कल मैं तुम्हारे घर भोजन करने आऊंगी।”
लड़की यह सुनकर चिंतित हो गई कि वह मां लक्ष्मी के लिए क्या पकाएगी। उसके पिता ने कहा,
“बेटी, श्रद्धा और प्रेम से बना भोजन सबसे श्रेष्ठ होता है।”

तभी (Suddenly) आकाश से एक चील आई और किसी रानी का नौलखा हार गिरा गई। उस हार को देखकर लड़की का मन प्रसन्न हो गया और उसने उसे थाल में सजा दिया।
महालक्ष्मी जी का आशीर्वाद
अगले दिन महालक्ष्मी जी गणेश जी के साथ उसके घर आईं। शुरू में (Initially) उन्होंने सोने की चौकी पर बैठने से मना किया, लेकिन लड़की की सच्ची भावना देखकर मान गईं। भोजन के बाद अंत में (Finally) मां लक्ष्मी ने आशीर्वाद दिया —
“जिस घर में ऐसी श्रद्धा और भक्ति होगी, वहां मैं सदा निवास करूंगी।”
Lakshmi Ji Ki Katha से सीख
निष्कर्ष में (In conclusion) यह Lakshmi Ji Ki Katha सिखाती है कि सच्चे मन, श्रद्धा और निष्ठा से किया गया भोग, मां लक्ष्मी को अवश्य प्रसन्न करता है। भक्ति और सच्चा भाव ही वास्तविक संपत्ति हैं, जो हर घर में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आते हैं।