भोपाल इस वर्ष के दिवाली समारोह में जहाँ शहर और आसपास की इलाकों में घर-दिवारों की जगमगाहट थी, वहीं एक बेहद खतरनाक घटना ने त्योहार की खुशी को दर्दनाक बदलाव में बदल दिया। बताया जा रहा है कि शहर में अवैध रूप से इस्तेमाल की जा रही “कार्बाइड गन” नामक उपकरणों के विस्फोट से 125 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें से कुछ की दृष्टि भी स्थायी रूप से प्रभावित हो गई है।
हादसे का मंजर
– बुधवार-गुरुवार की रात, भोपाल और उसके आस-पास के इलाकों में कई स्थानों पर ऐसी बड़ी संख्या में चोटिल पाए गए कि अस्पतालों में आपातकालीन स्थिति बन गई है।
– आघात के कारणों में प्रमुख रूप से इन उपकरणों के विस्फोट से निकलने वाला तेज गर्मी का गोला, उड़ने वाला प्लास्टिक और धातु का टुकड़ा (श्रैप्नल) तथा रासायनिक जलन सब शामिल हैं।
– चिकित्सकों का कहना है कि घायल अधिकांश 8 से 14 वर्ष के बच्चों एवं नवयुवकों के हैं।
– कुछ अस्पतालों में तो यह भी बताया गया कि 20-30 प्रतिशत मामलों में आंखों का अंदरूनी हिस्सा भी प्रभावित हुआ है, जैसे कि कॉर्निया, रेटिना तथा पुतली में जला हुआ घाव पाया गया है।
“कार्बाइड गन” क्या है?
ऐसे उपकरणों को आमतौर पर किसानों द्वारा कृषि प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाता है। ये उपकरण प्लास्टिक या धातु की नली, गैस लाइटर एवं कैल्शियम कार्बाइड आदि से बनाये जाते हैं। जब पानी कैल्शियम कार्बाइड से मिलती है, तो एसेटिलीन गैस पैदा होती है, जिसे सुलगाना विस्फोटक क्रिया को जन्म देता है।
ऐसा विस्फोट ऊर्जा एवं तापमान के दृष्टिकोण से बहुत खतरनाक हो सकता है — सामान्य फटाकों से कई गुणा भयंकर। इसके चलते ये उपकरण छोटे-छोटे गोले की तरह काम कर जाते हैं जो कटने-झिलने वाले टुकड़ों को आंखों के सामने फेंक देते हैं।
चिकित्सकीय स्थिति व प्रभावितों की संख्या
– राज्य में प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार 150 से 200 के बीच घायल हो सकते हैं।
– सिर्फ भोपाल में ही दर्जनों ऐसे मामले हैं जहाँ बच्चों ने दृष्टि खो दी है या दृष्टि गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।
– कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि 186 आंख-चोट (eye injury) मामले सामने आए हैं, जिनमें से 15 को तुरंत ऑपरेशन करना पड़ा।
– चिकित्सा अधिकारी बताते हैं कि कहीं-कहीं तो कॉर्निया का ट्रांसप्लांट करना पड़ सकता है, और कुछ मामलों में पूर्ण रूप से अंधेपन का जोखिम है।
विक्रेता, ऑनलाइन बिक्री तथा कानूनी पहल
– यह उपकरण आम बाजार में, सोशल मीडिया विज्ञापनों के माध्यम से भी बिक रहे थे।
– राज्य सरकार ने विस्फोटक पदार्थों के रूप में इन गैन्स-टाइप उपकरणों पर एक्टिव रूप से कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।
– पुलिस ने छापेमारी में 40-50 के आसपास ऐसे उपकरण और कैल्शियम कार्बाइड की बड़ी मात्रा जब्त की है।
जब प्रशासन की नींद खुली
– हालांकि त्योहार से पहले प्रशासन ने चेतावनी जारी की थी, पर वास्तव में इससे बेखबर होकर बिक्री और उपयोग बड़े पैमाने पर हुआ।
– हादसे की तस्वीर सामने आने के बाद खुली छापेमारी शुरू हुई है।
– चिकित्सा विभाग ने अस्पतालों में विशेष तैयारियाँ की थीं, लेकिन इन उपकरणों की विकरालता ने तैयारियों को चुनौती दी।
प्रभावित-परिवारों के दर्दनाक किस्से
– जैसे कि 14-15 वर्ष के छात्र हॉस्पिटल में भर्ती हैं, जिन्होंने एक साथ दिवाली-मस्ती में शामिल होते हुए अपनी दृष्टि खो दी है।
– एक पिता ने कहा: “ऐसे गन पहले ही बाजार से हटाई जानी चाहिए थीं, अब हमारे बच्चों की आंखों पर इसका दाग रह गया है।”
– चिकित्सक कह रहे हैं कि कुछ मामलों में जितनी जल्दी इलाज नहीं हुआ, उतना ही अधिक दुष्परिणाम है।
आगे की चुनौतियाँ और सुझाव
– इन उपकरणों को “खिलौने” के रूप में बेचा जा रहा था, जबकि यह स्पष्ट रूप से विस्फोटक पदार्थ हैं — ऐसे में बिक्री-खरीद पर तुरन्त रोक लगाना आवश्यक है।
– सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर इन विज्ञापनों पर निगरानी बढ़ानी होगी।
– दिवाली-त्योहार के अवसरों पर विशेष रूप से ऐसे खतरनाक उपकरणों की वापसी रोकने के लिए व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाना होगा।
– स्कूल-कॉलेजों और आबादी के बीच इस तरह के उपकरणों के खतरों को समझाने वाली मुहिम तत्काल शुरू होनी चाहिए।
– मेडिकल सुविधाएं तैयार रहें, लेकिन बेहतर ये होगा कि सचेत होकर ऐसे हादसों को पहले से रोका जाए।
निष्कर्ष
यह घटना याद दिलाती है कि केवल आतिशबाजियों या पारंपरिक पटाखों से ही खतरा नहीं है, बल्कि नए-नए, कम-ज्ञात उपकरण भी बेहद घातक हो सकते हैं। दिवाली का त्योहार जहाँ उजालों का प्रतीक है, वहीं इस तरह की घटनाएं उसे अंधेरे में बदल सकती हैं। भोपाल में इस बार जो हुआ, वह सिर्फ संख्या नहीं बल्कि बहुत-सारे टूटे हुए परिवारों की कहानी है। उम्मीद है कि प्रशासन, समाज तथा परिवार मिलकर इस तरह की खतरनाक प्रवृत्तियों को समय रहते नियंत्रित करेंगे ताकि आगे से ऐसी त्रासदियाँ न दोहराई जाएँ।
