प्रधानमंत्री मोदी ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निजी निवेश को बढ़ावा देने हेतु ₹1 लाख करोड़ का अनुसंधान निधि (R&D Fund) लॉन्च किया
भारत को वैश्विक विज्ञान और तकनीकी शक्ति बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ₹1 लाख करोड़ का अनुसंधान एवं विकास (R&D) कोष लॉन्च किया।
इस पहल का उद्देश्य है देश में “हाई-रिस्क, हाई-इंपैक्ट” वाले अनुसंधानों को बढ़ावा देना और निजी क्षेत्र को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाले दशक में भारत का लक्ष्य “ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था” (Knowledge-based Economy) के रूप में उभरना है, और यह कोष उसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
नवाचार और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में इस कोष का शुभारंभ करते हुए पीएम मोदी ने कहा:
“21वीं सदी में जो देश अनुसंधान और नवाचार में निवेश करेगा, वही वैश्विक नेतृत्व करेगा। भारत को उस दिशा में अग्रणी बनना है, और यह R&D कोष उसी लक्ष्य का प्रतीक है।”
उन्होंने आगे कहा कि भारत को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से सशक्त बनाने के लिए सरकार का ध्यान अब नवाचार, स्टार्टअप्स और अत्याधुनिक विज्ञान पर है।
यह कोष भारत में नवोन्मेषी अनुसंधान, डीप टेक (Deep Tech), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर सुरक्षा, हरित ऊर्जा और अंतरिक्ष तकनीक जैसे क्षेत्रों में निजी निवेश को गति देगा।
कोष का ढांचा और उद्देश्य
यह ₹1 लाख करोड़ का कोष अगले पांच वर्षों में चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
इसका प्रबंधन एक राष्ट्रीय अनुसंधान निधि बोर्ड (NRFB) के माध्यम से किया जाएगा, जिसमें सरकार, निजी उद्योग, शिक्षाविद और वैज्ञानिक समुदाय के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
इस योजना के प्रमुख उद्देश्य हैं:
- निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना: कंपनियों को अनुसंधान में निवेश करने के लिए टैक्स इंसेंटिव और साझेदारी अवसर प्रदान करना।
- युवा शोधकर्ताओं को समर्थन: विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में पीएचडी और नवाचार परियोजनाओं के लिए अनुदान।
- उद्योग-शिक्षा सहयोग: निजी कंपनियों और शिक्षा संस्थानों के बीच तकनीकी समाधान पर सहयोग को मजबूत करना।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत को उच्च स्तरीय विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और हरित ऊर्जा में वैश्विक नेता बनाना।
‘हाई-रिस्क, हाई-इंपैक्ट’ रिसर्च की अवधारणा
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि यह कोष विशेष रूप से “हाई-रिस्क, हाई-इंपैक्ट” प्रोजेक्ट्स पर केंद्रित रहेगा — यानी ऐसे अनुसंधान जो जोखिमपूर्ण जरूर हों, लेकिन यदि सफल हों तो उनका समाज, अर्थव्यवस्था और तकनीक पर गहरा प्रभाव पड़े।
उन्होंने कहा,
“हमारा उद्देश्य केवल सुरक्षित परियोजनाओं में निवेश करना नहीं है। हमें ऐसे विचारों पर काम करना है जिनसे आने वाले वर्षों में भारत को तकनीकी नेतृत्व मिले, भले ही उनमें जोखिम अधिक क्यों न हो।”
उदाहरण के तौर पर, क्वांटम कंप्यूटिंग, 6G तकनीक, ऊर्जा भंडारण, बायोटेक्नोलॉजी और स्पेस मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी।
निजी क्षेत्र की भागीदारी
सरकार का मानना है कि भारत में अनुसंधान और नवाचार का असली विस्तार तभी संभव है जब निजी क्षेत्र इसमें सक्रिय रूप से शामिल हो।
वर्तमान में भारत का R&D खर्च GDP का लगभग 0.7% है, जबकि विकसित देशों जैसे अमेरिका और जापान में यह अनुपात 2.5% से 3% तक है।
इस नई पहल के तहत सरकार चाहती है कि निजी कंपनियां भी अपने बजट का बड़ा हिस्सा तकनीकी अनुसंधान में लगाएं।
फार्मा, रक्षा, एयरोस्पेस, और आईटी कंपनियों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा ताकि वे दीर्घकालिक R&D प्रोजेक्ट्स में निवेश करें।
Reliance Industries, Tata Group, Adani Enterprises, Infosys, और Mahindra Group जैसी कंपनियों से सरकार ने प्रारंभिक परामर्श किया है, और कई ने सहयोग की इच्छा जताई है।
शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों को मिलेगा बड़ा लाभ
इस कोष से भारत के प्रमुख IITs, IISc, AIIMS और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों को विशेष वित्तीय सहायता मिलेगी।
इन संस्थानों को उन्नत प्रयोगशालाओं की स्थापना, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और पेटेंट विकास के लिए फंड मिलेगा।
इसके अलावा, राज्य विश्वविद्यालयों में भी अनुसंधान केंद्रों को आधुनिक उपकरण और तकनीक उपलब्ध कराने की योजना है।
इससे देशभर के युवाओं को उच्च स्तरीय वैज्ञानिक अनुसंधान में भाग लेने का अवसर मिलेगा।
सरकारी अधिकारियों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा:
“यह कोष प्रधानमंत्री के ‘विज्ञान को समाज से जोड़ने’ के दृष्टिकोण को साकार करेगा। यह भारत को विज्ञान-प्रधान राष्ट्र बनाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम है।”
IIT दिल्ली के निदेशक प्रो. रंजन कुमार ने कहा कि यह योजना भारतीय अनुसंधान पारिस्थितिकी को बदल देगी।
“पहली बार सरकार निजी और सार्वजनिक क्षेत्र को एक साझा मंच पर ला रही है। इससे भारतीय विज्ञान में विश्व स्तरीय नवाचार संभव होंगे।”
वैश्विक तुलना और प्रभाव
भारत का यह R&D कोष वैश्विक स्तर पर भी चर्चित हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह योजना भारत को चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों की अनुसंधान क्षमता के बराबर खड़ा कर सकती है।
अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन की तरह, भारत का यह कोष भी दीर्घकालिक अनुसंधान में निवेश के लिए डिजाइन किया गया है।
इससे न केवल घरेलू तकनीकी उद्योग को मजबूती मिलेगी, बल्कि भारत विदेशी निवेशकों और वैज्ञानिकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बन सकता है।
R&D कोष और ‘विकसित भारत 2047’ का लक्ष्य
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर ‘विकसित भारत 2047’ की दृष्टि का भी उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि विज्ञान, नवाचार और अनुसंधान में निवेश के बिना भारत का विकास अधूरा रहेगा।
“2047 तक जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, तब हम चाहते हैं कि दुनिया भारत को एक वैज्ञानिक और तकनीकी महाशक्ति के रूप में देखे,” प्रधानमंत्री ने कहा।
यह कोष इसी दीर्घकालिक लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक ठोस कदम है।
भविष्य की संभावनाएँ
सरकार अगले दो वर्षों में इस योजना के तहत 500 से अधिक अनुसंधान परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देने की योजना बना रही है।
साथ ही, इस कोष का उपयोग देशभर में 10 नए उन्नत अनुसंधान केंद्रों की स्थापना के लिए भी किया जाएगा।
इन केंद्रों का उद्देश्य होगा —
- उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करना
- वैश्विक वैज्ञानिकों के साथ सहयोग
- भारत को नवाचार-चालित अर्थव्यवस्था में रूपांतरित करना
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया ₹1 लाख करोड़ का अनुसंधान कोष भारत की वैज्ञानिक स्वावलंबन और तकनीकी उत्कृष्टता की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
यह योजना केवल वित्तीय निवेश नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण है जो आने वाले वर्षों में भारत को वैश्विक विज्ञान-तकनीक मानचित्र पर अग्रणी स्थान दिला सकती है।
