UPSC में लेटरल एंट्री भर्ती के विज्ञापन को रद्द करने के निर्णय के बाद, इस मुद्दे पर उठे विवादों का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक न्याय के प्रति हमेशा अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। वैष्णव ने कहा कि लेटरल एंट्री का निर्णय पारदर्शी तरीके से लिया गया था, और अब इसमें आरक्षण का सिद्धांत लागू करने का निर्णय लिया गया है।
सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता:
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान और सामाजिक न्याय की दिशा में मजबूत कदम उठाए हैं। UPSC की लेटरल एंट्री के फैसले में आरक्षण के सिद्धांत को जोड़ना इसी प्रतिबद्धता का हिस्सा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पहले ओबीसी कमीशन को साधारण बॉडी से संवैधानिक दर्जा दिया गया था और नीट, मेडिकल एडमिशन, सैनिक और नवोदय विद्यालयों में भी आरक्षण लागू किया गया है। उन्होंने भारत की आदिवासी राष्ट्रपति का उदाहरण देते हुए कहा कि यह मोदी सरकार की सामाजिक न्याय के प्रति वचनबद्धता को दर्शाता है।
कांग्रेस पर सवाल:
वैष्णव ने यह सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस ने अपने शासनकाल में लेटरल एंट्री के तहत आरक्षण का ध्यान रखा था। उन्होंने कहा कि 2014 से पहले फाइनेंस सेक्रेटरी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री से लोग नियुक्त किए गए, लेकिन उस समय आरक्षण के सिद्धांत को अनदेखा किया गया था। उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह, डॉ. मोंटेक सिंह अहलूवालिया, और डॉ. विजय केलकर का उदाहरण देते हुए कहा कि वे सभी लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्त किए गए थे, लेकिन उस समय आरक्षण का ध्यान नहीं रखा गया।
सरकार के इस कदम से यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय को लेकर गंभीर है और आरक्षण को सभी सरकारी प्रक्रियाओं में लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।