Durg Malla: दुर्गा मल्ल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में साहस, देशभक्ति और बलिदान का प्रतीक हैं।
परिचय
उनका जन्म 1 जुलाई 1913 को देहरादून के दोईवाला में हुआ था। दुर्गा मल्ल पहले गोरखा सैनिक थे जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अदम्य साहस और बलिदान ने उन्हें राष्ट्रीय नायक बना दिया।
दुर्गा मल्ल कौन थे?
दुर्गा मल्ल का जन्म एक गोरखा परिवार में हुआ था और वे अपने समुदाय की वीरता और शौर्य से बहुत प्रभावित थे। 18 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना की गोरखा राइफल्स रेजिमेंट में भर्ती हो गए। लेकिन जल्द ही उनके देशभक्ति के जज्बे ने उन्हें 1942 में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में शामिल कर दिया, जहां उन्होंने ब्रिटिश राज तंत्र के खिलाफ लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दुर्गा मल्ल ने क्या किया?
दुर्गा मल्ल का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। INA के सदस्य के रूप में उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ गुप्त सूचनाएं जुटाने और क्रांतिकारी गतिविधियों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी बहादुरी और समर्पण ने उन्हें INA का महत्वपूर्ण सदस्य बना दिया। हालांकि, 1944 में ब्रिटिश सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अत्यधिक यातनाओं के बावजूद उन्होंने अपने साथियों के साथ विश्वासघात नहीं किया और अपने संकल्प पर अडिग रहे।
क्यों मनाई जाती है दुर्गा मल्ल की पुण्यतिथि?
दुर्गा मल्ल को 25 अगस्त 1944 को ब्रिटिशों द्वारा फांसी दी गई। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। हर साल 25 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को गोरखा समुदाय और भारतीय सेना विशेष रूप से याद करती है। उनके बलिदान को सम्मानित करने के लिए इस दिन को श्रद्धांजलि दी जाती है।
आज के समय में इस दिन का महत्व
आज के समय में दुर्गा मल्ल की पुण्यतिथि को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है। उनकी स्मृति में देश के विभिन्न हिस्सों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारतीय सेना और गोरखा समुदाय विशेष रूप से इस दिन को गर्व और सम्मान के साथ मनाते हैं। कई जगहों पर श्रद्धांजलि सभाएं, मार्च और देशभक्ति के कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
अतिरिक्त जानकारी
दुर्गा मल्ल की वीरता को सम्मानित करने के लिए नई दिल्ली में संसद भवन परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। यह प्रतिमा उनके साहस और बलिदान की याद दिलाती है और उनके प्रति देश की कृतज्ञता को दर्शाती है।
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